धीरे धीरे जैविक खाद का प्रयोग घटता और रासायनिक खाद का प्रयोग बढ़ता ही जा रहा है। किसान फसलों की पैदावार को बढ़ाने के लिए रासायनिक खादों के प्रयोग से जाने अनजाने में मृदा की उर्वरकता को घटाता है। इस सब का सबसे अच्छा और बेहतर समाधान जैविक खाद है। जैविक खाद कई मामलो में रासायनिक खाद से काफी आगे है। जैविक खाद ना सिर्फ सेहत के लिए फायदेमंद होता है, बल्कि यह फसलों की पैदावार को 2 से 3 गुना तक बढ़ा देता है। आज हम आपको रासायनिक खाद के नुकसान, जैविक खाद के फायदे और कुछ माध्यम से जैविक खाद भी बनाने की तारिके बताने वाले है।
रासायनिक खाद के नुकसान –
- मिट्टी की उर्वरकता को नष्ट कर जमीन को बंजर बना देते है।
- इसके प्रयोग से पैदा किये गए अनाज में रसायन मिल जाते है, जो अनाज को खाने वाले इंसान को घातक बीमारियों का शिकार बना देता है।
- रासायनिक खाद के प्रयोग वाली फसलों में जैविक खाद वाली फसलों की सिंचाई की तुलना में 3-4 बार अधिक सिंचाई करनी पड़ती है।
- आसपास के जल के स्त्रोतों को भी दूषित करते है।
जैविक खाद के फायदे –
- कृषि योग्य भूमि की उर्वरक क्षमता में सुधार होता है।
- मृदा(मिट्टी) की सरंचना में सुधार होता है, जिससे फसलों के पौधों की जड़े फ़ैल कर मजबूती प्रदान करती है।
- मृदा का अपरदन(बहाव) रुकता है और मिट्टी की पानी को सोखने की क्षमता बढ़ती है।
- मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवों को पनपने में सहायता करता है, जो पौधे को पौषक तत्व देते है।
- जैविक खाद मृदा के तापमान और नमी को पौधे के अनुसार बनाता है।
विभिन्न प्रकार से जैविक खाद किसान खुद बना सकते है –
1. वर्मीकम्पोस्ट –
भारत में लम्बे समय से वर्मीकम्पोस्ट के माध्यम से जैविक खाद तैयार किया जाता है। जिसमे खेती और पशुपालन से समंबंधित सामग्री की जरुरत होती है एवं खाद तैयार करने की प्रक्रिया भी आसान होती है। हम आपको एक के बाद एक चरण की सम्पूर्ण जानकारी देने वाले है। वर्मीकम्पोस्टिंग के लिए किसी भी विशेष सामग्री की आवश्यकता नहीं होती है। इसके लिए खेती के अवशेष, सुखी और गीली पत्तिया, खराब फल और सब्जिया एवं पशुओ का गोबर की जरुरत होती है। इसमें सबसे जरुरी केंचुए होते है, जो इसीनिया फोएटिडा, फेरिटिमा एलोंगता और यूड्रिजस यूजिनी प्रजाति के हो तो सबसे बेहतर है।
- सबसे पहले एक ऐसे स्थान की जरुरत होती है, जंहा का तापमान और नमी का स्तर नियंत्रित हो।
- फिर शेड में वर्मी टैंक का निर्माण करना होगा, जो कि 10 मीटर लम्बा, 1 मीटर चौड़ा और 0.5 मीटर गहरा हो।
- खाद बनाने के लिए वर्मी टैंक में 15 दिनों तक गोबर और घरेलु कचरे को सड़ाये। सड़ाने के पश्चयात परत के रूप में चौड़ा कर इसमें लगभग 700 केंचुए प्रति वर्ग मीटर के क्षेत्रफल के अनुसार डाल दे।
- लगभग एक महीने के बाद टैंक के मटेरियल को पलटे। दो से ढाई महीने के अंतराल में यह जैविक खाद बनकर तैयार हो जायेगा।
- साथ ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि वर्मी टैंक के अंदर के तापमान को 25-30 डिग्री सेल्सियम के बीच रखे और नमी को 30-35 प्रतिशत के बीच रखे।
2. गोबर की खाद –
गोबर से बनाई गयी जैविक खाद सबसे बेहतर होती है। साथ ही इसके लिए घर पर पाए जाने वाले गाय/भैंस का गोबर भी काफी होता है। हालाँकि गोबर के अनुसार ही खाद बनता है, यानि की ज्यादा गोबर से ज्यादा जैविक खाद। गोबर की खाद बनाने के लिए दो विधियां है, जिसमे पहली गरम और ठंडी विधि शामिल है। दोनों विधियों के लिए 9.1 मीटर लम्बा, 1.8 मीटर चौड़ा और 0.8 मीटर गहरा गड्डा बनाया जाता है और इसमें गोबर भरे। ठंडी विधि के लिए गड्डे को बंद कर दिया जाता है, जिससे उसमे कोई भी हवा ना जा पाए। वही गरम विधि में गड्डा खुला रहता है। दोनों विधियों में तापमान का अंतर होता है, जिस वजह से इनका नाम ठंडी और गरम विधि है।