बीते 7 जून को मॉनसून ने भारत में एंट्री की है और यह धीरे-धीरे दक्षिण भारत से होते हुए सम्पूर्ण देश में आएगा। सोयाबीन खरीफ की फ़सल है, जिसकी बुवाई जून-जुलाई के मध्य होती है। मध्यप्रदेश मे सबसे ज्यादा सोयाबीन की बुवाई की जाती है, जिस वजह से मध्यप्रदेश को सोयाप्रदेश के रूप में भी जाना जाता है। सोयाबीन की उन्नत खेती करने के लिए, वैरायटी का चयन, बुवाई की विधि, सहित रोगों से बचाव का तरीका मालूम होना सबसे आवश्यक है। आज हम इस पोस्ट के माध्यम से आपको सोयाबीन की बम्पर पैदावार वाली वैरायटी के साथ सोयाबीन की फ़सल की बुवाई से लेकर कटाई तक की सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं। कृपया अंत तक पूरा पढ़ें एवं अधिक से अधिक किसान भाइयों तक यह महत्तवपूर्ण जानकारी पहुंचाये।
बम्पर पैदावार देने वाली सोयाबीन की बेस्ट वैरायटी
- केडीएस 726 (KDS-726)/फूले संगम
सोयाबीन की यह एक ऐसी वैरायटी है, सोयाबीन की इस किस्म की फली 3 दानों वाली होती एवं एक ही पौधे पर अधिकतम 350 फलियों तक लग सकती है। सोयाबीन का दाना मजबूत होने के कारण इसकी प्रति हेक्टेयर की उत्पादकता 35-45 क्विंटल तक होती है। - जेएस 2069 (JS-2069)
जेएस 2069 वैरायटी बम्पर उत्पादकता के साथ कम समय में पक कर तैयार हो जाती है। बुवाई के लिए JS-2068 वैरायटी के बीजों की मात्रा 38 से 40 किलो प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है। इसका उत्पादन 22-28 क्विंटल प्रति हेक्टर तक होता है। - बीएस 6124 (BS-6124)
सोयाबीन की बीएस 6124 किस्म के फूल बैंगनी एवं पत्ते लंबे होते हैं। 90 से 95 दिनों के समय अन्तराल में पक कर तैयार हो जाती है। बुवाई के लिए BS-6124 वैरायटी के बीजों की मात्रा 35 से 40 किलो प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है। इसकी पैदावार 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की होती है।
सोयाबीन की बुवाई का बेस्ट तरीका
- सोयाबीन की बुवाई के लिए बीजों की कतारों को प्रति 45 सेंटीमीटर की दूरी पर बोना है।
- सोयाबीन की कम ऊंचाई वाली किस्मों की बुवाई के लिए बीजों की क़तारों को प्रति 30 सेंटीमीटर की दूरी पर बोना है।
- एक ही कतार में पौधे की दूरी 5 से 7 सेंटीमीटर तक की होनी चाहिए।
- बीजों को 2.5 से 3 सेंटीमीटर की गहरायी तक डाले।
- बुवाई के समय मिट्टी में नमी की मात्रा का खास ख्याल रखे।
सोयाबीन की फ़सल मे लगने वाले रोग एवं उनका उपचार
- पीला मोजक रोग
सोयाबीन मे पीले मोजक वायरस के कारण यह रोग उत्पन्न होता है एवं एक पौधे से दूसरे पौधों को संक्रमित करने का कार्य सफेद मक्खी द्वारा किया जाता है। पीला मोजक रोग का मुख्य लक्षण पत्तों पर पीले धब्बे पड़ जाना होता है। यह धब्बे धीरे-धीरे पूरे पत्ते को पीला कर नष्ट कर देते हैं। इस रोग से बचाव के लिए बाजार से दवाई लाकर छिड़काव कर सकते हैं।
- सामान्य मोजक रोग
यह एक ऐसा रोग है, जो कि विशेष बीजों मे पहले से मौजूद होता है। सामान्य मोजक रोग का वायरस बीज़ के अंदर ही मौजूद होता है। इस रोग का लक्षण यह होता है कि उगे हुए पौधे की पत्तियाँ सिकुड़ी हुयी होती है एवं फलियाँ कमजोर लगती है। रोग के उपचार के लिए निकटतम किसान सेवा केंद्र से सम्बंधित दवाई का छिड़काव करे।
- सोयाबीन मे कई अन्य प्रकार के रोग भी आ सकते हैं, जैसे गेरूआ रोग, स्फोट रोग, अंगमारी रोग एवं कई और। इन सभी रोगों से रोकथाम एवं बचाव के लिए किसान सेवा केंद्र से संपर्क करे।