आज के समय में कृषि कार्य करना बहुत ही आसान हो गया है क्योकि नई- नई तकनीकी से लैस कृषि यंत्र आ चुके है। लेकिन अब फसलों में इतनी बीमारी आती है कि किसानों को कई बार कीटनाशक दवा का छिड़काव करना पड़ता है। धान की फसल में मुख्य कारण है जिंक की कमी होना है। अगर आप भी जानना चाहते है धान के फसल में जिंक कब डालने से बीमारी नहीं आती एवं पैदावार अधिक से अधिक हो, तो इस पोस्ट को पूरा पढ़ें।
ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश किसानों को कृषि कार्य करने के सही तरीके का ज्ञान ना होने पर जिंक नहीं डालते है। जिससे धान की फसल में जिंक की कमी होने के कारण विभिन्न प्रकार के रोग हो जाते हैं, जैसे कि तना छेदक, पत्ता लपेटक, पीली पत्ती, खैरा रोग। जिनकी वजह से धान के कल्ले निकलना बंद हो जाते है। इसलिए सभी किसानों को सही समय में जिंक डालना चाहिए। इससे किसानों के कीटनाशक का पैसा भी बच जाते है और पैदावार भी अधिक होते है।
धान की फ़सल मे जिंक की कमी के लक्षण
धान के फसल में जिंक की कमी से पत्ती पीली, पत्ते भूरे रंग के धब्बे होने लगते है। जिंक की कमी धान के नए कल्ले निकलना बंद हो जाते है एवं धान का बढ़ाव भी रुक जाता है। फसल की पत्तिया मुड़ने लगती है। जिंक की कमी होने के कारण बालिया निकलने में देरी होती है और बलिया छोटी-छोटी निकलती है। जिंक की कमी के कारण खैरा रोग आने की संभवाना बढ़ जाती है।
फ़सल मे ऐसे करे जिंक की कमी पूरी
धान के रोपाई से ठीक पहले 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट मिलाकर प्रति एकड़ के अनुसार छिड़काव करना चाहिए। कमी होने के किसी प्रकार के लक्षण दिखाई देने लगे तो 1 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 5 किलोग्राम यूरिया को 200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। इसके बाद धान के कल्ले निकलने से पहले 2 किलोग्राम जिंक सल्फेट का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए, ऐसा करने से धान के अधिक कल्ले निकलते है।
सोयाबीन की फ़सल मे उगने वाले खरपतवारों का ऐसे करे नियंत्रण
लौंग की एक बार बुवाई कर सालों तक कमाये लाखों का मुनाफ़ा, देखे लौंग की खेती का सही तरीका